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प्रीति रंग

*लेखनी काव्य प्रतियोगिता*
*24 फरवरी,2023*

*शीर्षक:प्रीति रंग*

*(विधाता छंद)*

बहे जब प्रेम की गंगा समझ घनश्याम आये हैं।
रखे वंशी अधर प्रिय पर मधुर मधु गीत गाये हैं।
वहीं राधा रमण करतीं विचरती कृष्ण को लेकर।
सदा मुस्कान भरतीं हैं हृदय अपना सहज देकर।

वहीं यमुना थिरकती हैं वहीं वृंदा चहकती हैं।
वहीं मुरली चमकती है वहीं गोपी दमकती हैं।
वहीं लीला सदा होती सदा मोहित सभी बाला।
वहीं गौवें सभी चरतीं खुशी से झूमते ग्वाला।

सुहाना दृश्य अति मोहक छटा अदभुत निराली है।
सभी दौड़े चले आते सुशोभित कर गहे प्याली।
रिझाते श्याम मनमोहन नचाते नाचते गाते।
सकल व्रज भूमि रंगीली सभी सुख प्रीति रस पाते।

यहां रहते रसिक प्रेमी सभी श्री कृष्ण में जीते।
हुए सब प्यार में अंधा मधुर श्री श्याम रस पीते।
सभी करते भजन कीर्तन सभी में स्नेह छाया है।
सभी आत्मज स्वजन परिजन सभी की ब्रह्म काया है।

साहित्यकार डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी

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4 Comments

Wooow Bahut hi सुन्दर और प्रेममय कविता

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Alka jain

01-Mar-2023 06:55 PM

Nice 👍🏼

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Muskan khan

26-Feb-2023 09:46 PM

Nice

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